क्यों रास नहीं आता उन्हें चहकना मेरा,
औरत होना ऐसा भी तो गुनाह नहीं..
जी लेने दो मुझे थोड़ा सा मेरी तरह,
ख्वाहिशें मेरी बेपनाह नहीं ।
चाहिए मुझे भी-----
मुट्ठी भर धरती,थोड़ा नील गगन,
थोड़ा सा महकता चमन,
थोड़ी सी काँटों की चुभन,
थोड़ी सी बहकती पवन ।
मुझे छूना है लहरों को,
जीना है पहरों को....
फूलों सा महकना है,
तितली सा बहकना है,
पक्षियों सा चहकना,
शाखों सा लहकना है।
रेत पर निशान बनाने हैं कदमों के,
बंधन तोड़ने हैं रस्मों के।
मुझे मेरी सीमाएँ पता हैं....
नहीं करूँगी कभी उनका अतिक्रमण,
बस मुझे जीने दो मेरा जीवन।
मुझे घूमना है सड़कों पर
बेमकसद दूर तक...
उड़ान भरनी है आसमान
में सुदूर तक....
चाय पीनी है नुक्कड़ पर
दोस्तों के संग,
महसूस करने हैं ज़िंदगी के
अनछुए रंग ।
नर्म दूब पर चलना है....
लहरों सा बहना है ।
धूप पकड़नी है हाथों में,
खुश्बू कैद करनी है सांसों में....
और पकड़ना है ज़िंदगी का वो सिरा,
जिसे छूते ही मैं......“मैं” बन जाती हूँ।